1857 की क्रांति: पृष्ठभूमि, प्रमुख घटनाएँ, प्रमुख क्रांतिकारी और परिणाम | 1857 Ki Kranti In Hindi
दोस्तों, आज के इस लेख हम बात करने वाले है इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना 1857 की क्रांति (1857 Ki Kranti In Hindi) के बारे में। 1857 Ki Kranti भारतीय इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है, इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। इस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को इतिहास में सिपाही-विद्रोह या भारतीय जन-विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशक्त विद्रोह था। इस लेख में 1857 Ki Kranti In Hindi के सभी पक्षों जैसे की 1857 Ki Kranti Ke Karan, प्रमुख घटनाएं, प्रमुख क्रांतिकारी और क्रांति के प्रभाव आदि के बारे में जानकारी दी गयी है।
Table of Content
- 1857 की क्रांति की पृष्ठभूमि - 1857 Ki Kranti In Hindi
- 1857 की क्रांति के कारण - 1857 Ki Kranti Ke Karan
- 1857 ई. की क्रांति के प्रमुख क्रांतिकारी
- 1857 ई. की क्रांति के प्रमुख अंग्रेज अधिकारी
- 1857 की क्रांति के समय की प्रमुख रियासतें और शासक
- 1857 ई. की क्रांति की प्रमुख छावनियां
- 1857 की क्रांति के प्रमुख विद्रोह के स्थान
- 1857 ई. की क्रांति के परिणाम
- 1857 ई. की क्रांति की असफलता के कारण
1857 की क्रांति की पृष्ठभूमि - 1857 Ki Kranti In Hindi
जैसा की हम सब जानते है की पहली बार अंग्रेज 1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में भारत व्यापार करने आये किंतु बाद में अंग्रेजो ने धीरे-धीरे भारत के अलग-अलग क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना अधिकार स्थापित किया और फिर मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रान्त तथा अन्य रियासतों को भी अपने अधिकार में ले लिया। अंग्रेजों ने भारतीय जनता पर हुकूमत करने के लिए अपने अनुसार नीतियाँ बनाई और उन्हें भारत जनता पर थोप दिया गया।
1857 की क्रांति कोई अचानक हुई घटना नहीं थी बल्कि इसकी पृष्ठभूमि काफी लंबे अरसे से तैयार हो रही थी। प्लासी के युद्ध (1757 ई.) से लेकर 1857 की क्रांति तक के इन 100 वर्षों के मध्य अंग्रेजों ने भारत के सभी वर्गों और रियासतों के राजाओं, ज़मींदारो, सैनिकों, किसान, मौलवी, ब्राह्मण, व्यापारियों आदि सभी का हद से ज्यादा शोषण किया। ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक नीतियों के कारण विद्रोह की आग धीरे-धीरे सुलगती रही जो अंत में 1857 की क्रांति के रूप में उभरी। यह क्रांति भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।
1857 की क्रांति के कारण - 1857 Ki Kranti Ke Karan
सामाजिक व धार्मिक कारण
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन विस्तार के साथ ही अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ अमानुषिक व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया था। काले और गोरे का भेद स्पष्ट रूप से उभरने लगा और अंग्रेज, भारतीयों को गुलाम बनाने लगे। समाज में अंग्रेजों के प्रति उपेक्षा की भावना बहुत अधिक बढ़ गई, क्योंकि उनके रहन-सहन व अन्य व्यवहार एवं उद्योग आविष्कार से भारतीय व्यक्तियों की सामाजिक मान्यताओं पर काफी अधिक प्रभाव पड़ा। भारतीय जनता अपने सामाजिक जीवन में अंग्रेजों का प्रभाव स्वीकार नहीं करना चाहते थे। अंग्रेजों की खुद को श्रेष्ठ और भारतीयों को हीन समझने की भावना ने भारतीयों को क्रांति करने की प्रेरणा प्रदान की।
अंग्रेजों ने भारतीयों पर धार्मिक दृष्टि से भी काफी आघात किया था। इस काल में योग्यता की जगह धर्म को पद का आधार बनाया गया, जो कोई भी भारतीय अगर ईसाई धर्म अपना लेता उसकी पदोन्नति कर दी जाती थी, जबकि भारतीय धर्म का अनुपालन करने वालों को सभी प्रकार से अपमानित किया जाता था। इससे भारतीय जनसाधारण के बीच अंग्रेजों के प्रति धार्मिक असहिष्णुता उत्पन्न हो गई। जिसके कारण भारतीयों ने ईसाई धर्म का विरोध किया।
भारत में प्राचीन समय से चली आ रही सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं में ब्रिटिश सरकार ने काफी बदलाव किये, जिससे कुछ रूढ़िवादी प्रथाओं का भी अंत हुआ जैसे की लॉर्ड बेंटिक ने सती प्रथा को बंद करवाया, लॉर्ड कैनिंग ने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही बाल विवाह जैसी प्रथाओं को भी अंग्रेजों ने बंद किया। अंग्रेजों की इन सामाजिक बदलावों से रूढ़िवादी लोगों में काफी आक्रोश उत्पन्न हो गया जो आगे चलकर विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना था।
धार्मिक दृष्टि से आघात हुए हिंदु और मुस्लिम जनता ने 1857 के सैनिक विद्रोह में शामिल होकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्रांति की।
राजनैतिक कारण
1857 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने हड़प नीति चलाई थी। जिसके द्वारा भारत के अलग-अलग क्षेत्र की रियासतों को ब्रिटिश सरकार ने धीरे-धीरे अपनी कब्जे में ले लिया। इस हड़प नीति के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने गोद लेने की प्रथा को भी बंद कर दिया गया था।
इसके अलावा वारेन हेस्टिंग्स और लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि और लेफ्ट नीति के कारण भारतीय शासको में भारी असंतोष फैला। इस नीति के अंतर्गत किसानों और अन्य वर्गों का काफी अधिक शोषण किया गया। जो 1857 की क्रांति का एक प्रमुख कारण रहा।
ईस्ट इंडिया कंपनी की 'प्रभावी नियंत्रण' 'सहायक संधि' और 'व्यपगत का सिद्धांत' जैसी नीतियों ने जन-असंतोष एवं विप्लव को बढ़ावा दिया। बड़ी संख्या में भारतीय शासको और प्रमुखों को हटा दिया गया, जिससे अन्य सत्तारूढ़ परिवारों के मन में भय पैदा हो गया। कर्नाटक और तंजौर के नवाबों की राजकीय उपाधियां समाप्त कर दी, अवध में कुशासन का आरोप लगाकर अपने कब्जे में कर लिया, मुगल सम्राट की उपाधि समाप्त कर दी।
सैन्य कारण
- भारतीय सैनिकों के साथ वेतन तथा पदोन्नति में भेदभाव
- भारतीय सैनिकों को सेना में उच्च पदों पर नियुक्ति न देना
- ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा सिपाहियों के साथ दुर्व्यवहार
- दुर्गम एवं सुदूर क्षेत्रों में लड़ने जाने पर विदेशी सेवा भत्ता देने से सरकार का इनकार
आर्थिक कारण
भारत की अर्थव्यवस्था एक आत्मनिर्भर और समृद्ध अर्थव्यवस्था थी लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था। अंग्रेजों के आने से काफी उद्योगों का पतन हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अकाल की स्थिति होने पर भी कर वसूला जाता था। जिससे आम जनता काफी प्रताड़ित हुई जिसके चलते भारत के लोगों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई।
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मशीनी माल सस्ता हो गया जिसके कारण अंग्रेजी माल अधिक बिकने लगा और इस कारण भारतीय माल की बिक्री ना के बराबर हो गई। जिससे भारतीय उद्योग-धंधे धीरे-धीरे नष्ट हो गए।
उद्योग-धंधे नष्ट होने के बाद श्रमिकों से बलपूर्वक अधिक श्रम कराकर उन्हें कम पारिश्रमिक देना प्रारंभ कर दिया। अंग्रेज भारत के माल पर अधिक कर वसूलने लगाते थे जिस कारण भारतीय माल अधिक महंगा हो गया और विदेश में भारतीय माल की मांग कम हो गई। स्वदेशी उद्योगों का विनाश होने के बाद ब्रिटिशो द्वारा तैयार माल को प्रोत्साहन मिलने लगा।
रेल सेवा के आने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के लघु-उद्योग भी नष्ट हो गए। रेल सेवा ने ब्रिटिश व्यापारियों को दूर-दराज के गांवो तक पहुंच दे दी। इसमें सर्वाधिक क्षति कपड़ा उद्योग (कपास और रेशम) की हुई। पारंपरिक उद्योगों के नष्ट होने और साथ-साथ आधुनिक उद्योगों का विकास न होने के कारण यह स्थिति अधिक विषम हो गई।
ब्रिटिश कंपनी ने खेती के सुधार पर बेहद कम खर्च किया। अधिकतर लगान कंपनी के खर्चों को पूरा करने में प्रयोग किया गया। ब्रिटिश कानून व्यवस्था के अंतर्गत भूमि हस्तांतरण वैध हो जाने के कारण किसानों को अपनी भूमि से भी हाथ धोना पड़ा था। जिसके कारण कृषक और मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गई साथ ही राजा और नवाबों तक की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई। लगान समय पर जमा न करने पर जमींदरों से उनकी जमीन छीन ली जाती थी। इन सब से परेशान होकर जनता ने विद्रोह का मार्ग अपनाया।
ब्रिटिश भू - राजस्व नीति
ब्रिटिश सरकार ने भू - राजस्व नीति में कई अधिक तीव्र परिवर्तन किए जिस कारण किसानों का अधिक शोषण होने लगा और किसान भुखमरी, गरीबी, ऋणग्रस्तता व दासता के शिकार हुए।
अन्य कारण
- अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना।
- अंग्रेजों द्वारा राजाओं के विरुद्ध षड्यंत्र व गुटबंदी को प्रोत्साहन देना।
- ज़मींदारो के वर्ग और उनकी रियासतों को समाप्त कर दिया गया जिससे जनता के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर गहरा असर पड़ा।
तात्कालिक कारण
बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे तथा अन्य सैनिकों जो की ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे ने 29 मार्च 1857 को गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस का प्रयोग करने से इनकार कर दिया। मंगल पांडे ने विरोध के साथ काफी उत्पात मचाया जिस कारण 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई। इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया और देशभर के सैनिकों मे काफी रोष भर गया और सैनिकों ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया, जिसमें जनता ने भी सैनिको का खुलकर समर्थन किया।
10 मई 1857 का दिन भारतीय इतिहास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इस दिन ही मेरठ से क्रांति की शुरुआत हुई थी। इस दिन मेरठ के सदर बाजार में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाही में विद्रोह भड़क उठा था। विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों से शुरू हुआ और धीरे-धीरे इन छोटी झड़पों ने क्रांति का रूप ले लिया। यह विद्रोह लगभग 2 वर्ष तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चलता रहा।
1857 ई. की क्रांति के प्रमुख क्रांतिकारी
1857 के विद्रोह का नेतृत्व दिल्ली के सम्राट बहादुर शाह जफर II कर रहे थे, परंतु यह नेतृत्व औपचारिक एवं नाममात्र का था, विद्रोह का वास्तविक नेतृत्व जनरल बख्त खां के हाथों में था। इस क्रांति के कुछ प्रमुख क्रांतिकारी नायक निम्नलिखित थे -
जनरल बख्त खां | बरेली |
नाना साहब | कानपुर |
बहादुर शाह जफर | दिल्ली |
बेगम हजरत महल | लखनऊ |
रानी लक्ष्मीबाई | झांसी |
तात्या टोपे | कानपुर |
खान बहादुर | रोहेलखंड |
कुंवर सिंह | जगदीशपुर |
मौलवी अहमदउल्ला | फैजाबाद |
शाहमल | उत्तर प्रदेश |
मंगल पांडे | बैरकपुर |
गजाधर सिंह | राजस्थान |
राजा प्रताप सिंह | ओडिशा |
फिरोज शाह | मंदसौर |
मोहम्मद खान | बिजनौर |
1857 ई. की क्रांति के प्रमुख अंग्रेज अधिकारी
निकोलस हडसन |
लॉर्ड डलहौजी |
लॉर्ड कैनिंग |
लॉर्ड वेलेजली |
कॉलिन कैम्पबेल |
जनरल ह्यूरोज |
विलियम टेलर |
1857 की क्रांति के समय की प्रमुख रियासतें और शासक
शिव सिंह | सिरोही |
जसवंत सिंह | भरतपुर |
तख्तसिंह | जोधपुर |
महाराजा रामसिंह | जयपुर |
स्वरूप सिंह | उदयपुर |
मदनपाल सिंह | करौली |
बन्नेसिंह | अलवर |
लक्ष्मण सिंह | बांसवाड़ा |
पृथ्वी सिंह | झालावाड़ |
1857 ई. की क्रांति की प्रमुख छावनियां
बैरकपुर छावनी |
नीमच (M.P.) |
देवली (टोंक) |
एरिनपुरा (पाली) |
ब्यावर (अजमेर) |
खेरवाडा (उदयपुर) |
नसीराबाद (अजमेर) |
1857 की क्रांति के प्रमुख विद्रोह के स्थान
दिल्ली |
लखनऊ |
कानपुर |
झांसी और ग्वालियर |
बरेली |
इलाहाबाद और बनारस |
बिहार |
1857 ई. की क्रांति के परिणाम
- 1857 की सैन्य क्रांति ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के अंत का कारण बनी।
- भारतीय सिपाहियों का अनुपात को कम करके यूरोपीय सिपाहियों की संख्या को बढ़ाया गया।
- 1857 के विद्रोह के बाद 2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित किया जिसमें कंपनी शासन का अंत करके भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया। इसके अंतर्गत गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा।
- विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में साम्राज्य विस्तार करने की नीति का त्याग कर दिया तथा लोगों के सामाजिक और धार्मिक मामलों में भी हस्तक्षेप करना बंद कर दिया।
- सेना के भारतीय वर्ग का संगठन 'फूट डालो राज करो' नीति पर आधारित था। सैनिकों में राष्ट्रीय भावना न जागे इसलिए जाति समुदाय और क्षेत्र के आधार पर रेजीमेंटो की स्थापना हुई।
- विद्रोह के दौरान अंग्रेजी सरकार ने मुसलमान को हिंदुओं से बेहतर सुविधा देने की योजना बनाई, जिससे कि भारतीयों में भेदभाव उत्पन्न करके आंदोलन को कमजोर किया जा सके। इस नीति के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में काफी समस्या पैदा हुई।
- विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने यूरोपीय सेना के विस्तार में अधिक वृद्धि की।
- भारतीय राजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर अंग्रेज सरकार ने राजाओं को अपना उत्तराधिकारी गोद लेने के अनुमति प्रदान कर दी।
- विद्रोह के बाद जनसाधारण का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया इस दौरान जनता में शांति बनाने के लिए जनता के लिए नीति एवं सिद्धांतों की घोषणा की गई। 1 नवंबर 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने महारानी द्वारा भेजा गया घोषणा पत्र पढ़कर सुनाया।
- देसी रियासतों की नीति में बड़े परिवर्तन किये गए।
1857 ई. की क्रांति की असफलता के कारण
- भारतीय विद्रोह के पास कुछ ही बेहतर नेतृत्व मौजूद थे, लेकिन अंग्रेजों के पास अधिक कुशल सैन्य नेतृत्व मौजूद थे।
- देशी शासक विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की सहायता कर रहे थे। राजाओं की इस देशद्रोही पूर्ण भूमिका ने क्रांतिकारियों का मनोबल तोड़ा और क्रांति के दमन के लिए अंग्रेजी सरकार को प्रोत्साहित किया।
- क्रांति में सुव्यवस्थित संगठन तो था, लेकिन संसाधन नहीं थे। विद्रोहियों के पास अंग्रेजों की तुलना में कम गुणवत्ता वाले हथियार थे।
- इस क्रांति की कोई एक सुनियोजित योजना नहीं थी।
- विद्रोहियों को औपनिवेशिक शासन की स्पष्ट समझ नहीं थी। जो विद्रोह के असफल होने का एक बड़ा कारण रही।
- सैनिकों ने आक्रोश में आकर निश्चित समय से पहले ही विद्रोह शुरू कर दिया, सैनिकों की इस लापरवाही के कारण क्रांति की योजना अधूरी रह गई।
- पूर्ण योजना न होने के कारण 1857 की क्रांति का प्रचार संपूर्ण भारत में नहीं हो सका।
- भारतीय सैनिक/जनता आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण क्रांतिकारी आधुनिक शास्त्रों का प्रबंध करने में असफल रहे।
- एकीकृत विचारधारा एवं राजनीतिक चेतना की कमी।
- 1857 के विद्रोह को रोकने के लिए अंग्रेज सरकार ने निर्ममतापूर्ण दमन की नीति अपनाई। जिसका नेतृत्व जनरल नील ने किया।
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