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फ्रांसीसी क्रांति क्या थी? इसके कारण, प्रमुख घटनाएँ और प्रभाव | French Revolution in Hindi

इस लेख में हम 1789 की France Ki Kranti के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे और जानेंगे आखिर कौन-कौन से ऐसे कारक रहे थे जिन्होंने फ्रांस की क्रांति के घटित होने में अपना योगदान दिया। हम इस क्रांति के कारणों, इस क्रांति के दौरान हुई प्रमुख घटनाओं और इस क्रांति के पश्चात के प्रभावों के बारे में चर्चा करेंगे।

France Ki Kranti


Table of Content



फ्रांस की क्रांति - France Ki Kranti 

1789 की France Ki Kranti (French Revolution in Hindi) विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, इस क्रांति ने विश्व को एक नई दिशा प्रदान की और इस क्रांति से प्रेरित होकर यूरोप में कई अन्य क्रांतियां हुई। फ्रांसीसी क्रांति अचानक से घटित हुई कोई घटना नहीं थी वरन इसकी पृष्ठभूमि कई वर्षों से निर्मित होती आ रही थी। फ्रांस की क्रांति राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध कम थी उसमें सामाजिक असंतोष अधिक देखने को मिलता है। फ्रांस के इतिहास में 1789 से 1815 तक का समय राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल का दौर था। इस दौरान कई बड़े परिवर्तन हुए थे। चलिए विस्तार से फ्रांस की क्रांति के बारे में जानते है। 



फ्रांस की क्रांति के कारण - France Ki Kranti Ke Karan

फ्रांस की क्रांति कोई अचानक से घटित हुई घटना नहीं थी बल्कि इसके पीछे कई कारण निहित थे, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है -

1. राजनीतिक कारण 

(i) निरंकुश राजतंत्र  

फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था जो 'राजत्व के दैवी सिद्धांत' पर आधारित था अर्थात राजा स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था तथा प्रजा को राजा की हर आज्ञा बिना किसी विरोध की माननी होती थी। लुई XIV के शासनकाल (1643-1715) में तो ये निरंकुशता बहुत अधिक बढ़ गई। इसका पता लुई XIV के कथन "मैं ही राज्य हूँ, मेरे शब्द ही कानून हैं" से भी चलता है। वह अपनी इच्छानुसार कानून बनाता था। आगे आने वाले शासक भी अयोग्य और निरंकुश साबित हुए। 


(ii) भ्रष्ट नौकरशाही 

फ्रांस का शासन पूरी तरह से नौकरशाही पर निर्भर था और नौकरशाही वंशानुगत थी। इसमें भर्ती के लिए कोई नियम-कानून नहीं थे। नौकरशाही के ऊंचे पदों पर कुलीन वर्ग के लोगों का ही अधिकार था और इस कारण निम्न या मध्य वर्ग का कोई योग्य व्यक्ति भी इन ऊंचे पदों को प्राप्त नहीं कर पाता था। फ्रांस की नौकरशाही में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार व्याप्त था, इसलिए लोगों में असंतोष पैदा होना बहुत स्वाभिक था। 


(iii) जटिल और भिन्न-भिन्न कानून 

फ्रांस में एक समान कानून संहिता का अभाव था और फ्रांस के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कानून लागू थे। साथ ही कानून इतने जटिल और अव्यवस्थित थे की आम जनता को अपने कानूनों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। 


(iv) भ्रष्टाचार युक्त न्यायिक प्रक्रिया व कानून

फ्रांस के राजा को कर लगाने में वसूली का अधिकार था और राजा की पास एक ऐसा कानून पत्र होता था जिससे वह जब चाहे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सजा दे सकता था । इस अधिकार पत्र को "लैत्र-द-काशे" कहा जाता था।


(v) साम्राज्यवादी नीति का प्रभाव 

उन दिनों यूरोप में साम्राज्यवादी नीति को अपनाया गया था और हर देश अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए प्रयास कर रहा था। फ्रांस के राजाओं का भी साम्राज्यवादी नीति में विश्वास था और वह भी अपने बजट का अधिक भाग सैन्य व्यवस्था पर खर्च कर देते थे। फ्रांस की आंतरिक स्थिति असंतोषजनक थी और उसमें सेना का खर्च बढ़ने से वह स्थिति और भी बिगड़ गई। वे अपने द्वारा अर्जित उपनिवेशों को भी सुरक्षित नहीं रख सके। उनकी साम्राज्यवादी नीति पूर्णतया असफल रही। 


(vi) सप्तवर्षीय युद्ध 

फ्रांस की विदेशी नीति असफल रही। साम्राज्यवादी नीति के द्वारा प्राप्त उपनिवेशों पर उसकी पकड़ ढीली पड़ती जा रही थी। फ्रांस युद्धों में उलझ गया था। इंग्लैंड के साथ उसका युद्ध 7 वर्षों तक चला, जिसमें फ्रांस की पराजय हुई और उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ा। कनाडा पर फ्रांस का अधिकार समाप्त हो गया और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी फ्रांस की प्रतिष्ठा को हानि पहुंची। 


(vii) अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव 

अमेरिका के उपनिवेशों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में सफलता प्राप्त की। फ्रांस, इंग्लैंड से बदला लेना चाहता था अतः उसने इस स्वतंत्रता संघर्ष में अमेरिका की हर प्रकार से सहायता की। जिन फ्रांसीसी सैनिकों ने उस आंदोलन में भाग लिया था, उन्होंने स्वतंत्रता के महत्व को समझा और जब वे अपने देश गए तो उन लोगों के मन में स्वतंत्रता की भावना थी और वहां की शासन व्यवस्था को देखकर उन लोगों ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया। 


2. सामाजिक कारण 

(i) सामाजिक विषमता 

फ्रांसीसी समाज में अत्यधिक विषमता व्याप्त थी। समाज 3 वर्गों में विभाजित था -

  • प्रथम एस्टेट - पादरी वर्ग 
  • द्वितीय एस्टेट - कुलीन वर्ग 
  • तृतीय एस्टेट - निम्न और मध्यवर्ग  


तृतीय वर्ग भी 2 वर्गों में विभाजित था - मध्यवर्ग और निम्नवर्ग। मध्यवर्ग में पढ़े लिखे और नौकरपेशा लोग जैसे शिक्षक, वकील, डॉक्टर, दार्शनिक, धनी किसान आदि आते थे जबकि निम्नवर्ग में गरीब किसान, मजदूर, मोची, बढ़ई आदि आते थे। 


प्रथम और द्वितीय एस्टेट के लोगों को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे और इन्हें कर से मुक्त रखा गया जबकि तृतीय एस्टेट के लोगों को न तो कोई विशेषाधिकार प्राप्त था और न ही वे कर से मुक्त थे, इन्हें बहुत अधिक कर देना होता था साथ ही उच्च वर्ग के लिए बेगार भी करनी होती थी। 


3. आर्थिक कारण 

(i) धन का दुरूपयोग 

फ्रांस की स्थिति उस समय ठीक नहीं थी। आर्थिक रूप से फ्रांस बहुत कमजोर हो गया था। राजा धन का एक बड़ा भाग आमोद-प्रमोद पर खर्च कर देते थे। राज्य का कार्य ऋण लेकर चलाया जा रहा था। 


(ii) करों में असामनता 

फ्रांस के विभिन्न हिस्सों के लिए अलग-अलग नियम थे और कर की व्यवस्था भी भिन्न थी। कर व्यवस्था में असमानता के कारण सारा वातावरण बिगड़ा हुआ था। कुलीन लोगों को बहुत कम कर जबकि गरीब किसानों और मजदूरों को बहुत ज्यादा कर देना होता था। 


(iii) अत्यधिक कर 

तृतीय एस्टेट अर्थात निम्न वर्ग के लोगों को बहुत ज्यादा कर देना होता था। इन्हें 2 प्रकार के प्रत्यक्ष कर टाइदटाइल देने होते थे। टाइद एक धार्मिक कर था जो चर्च द्वारा लोगों से वसूला जाता था जबकि टाइल राज्य द्वारा वसूला जाता था। इन करों के अतिरिक्त कई अन्य कर भी थे जो निम्न और मध्य वर्ग को देने होते थे जैसे की नमक कर, तंबाकू कर आदि। 


(iv) बेगार की प्रथा 

फ्रांस में बेगार की प्रथा का प्रचलन था। गरीबों से धनी लोग अपनी इच्छानुसार बेगार लेते थे। इसके कारण उनको श्रम का कोई मूल्य नहीं मिलता था। उनको हर प्रकार से तंग किया जाता था। सामंतों के अत्याचार के कारण लोगों की मन में आक्रोश था। 


4. बौद्धिक कारण 

इस युग में अनेक महान दार्शनिक और विचारक हुए जिन्होंने लोगों में सामाजिक चेतना पैदा करने का कार्य किया और समाज के लोगों को उनकी वस्तुस्थिति से परिचित करवाया तथा शोषण से मुक्ति के लिए प्रेरित किया। रूसो फ्रांस का एक बड़ा दार्शनिक व्यक्ति था। इसने "सामाजिक समझौता" (The Social Contract) नाम की एक पुस्तक लिखी जिसमें उसने जनतंत्रीय विचारधारा के बारे में प्रकाश डाला। दिदरों ने राजाओं की नीतियों का घोर विरोध किया। मॉन्टेस्क्यू ने The Spirit of The Law नामक अपनी रचना में सरकार के अन्दर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता के विभाजन की बात कही। इसी प्रकार वाल्तेयर, हीगंस, काण्ट, स्मिथ आदि कई अन्य महान दार्शनिकों ने समाज में नई चेतना जाग्रत करने का काम किया। 


फ्रांस की स्थिति को सुधारने के असफल प्रयास 

लुई 16वें के वित्तमंत्री तुर्गो ने फ्रांस की आर्थिक स्थिति को सुधारने के प्रयास किये और इस क्रम में उसने सरकारी व्यय में कमी करते हुए राजकीय आय को बढ़ाने के प्रयास किये। तुर्गो ने व्यापार व उद्योग में वृद्धि के लिए स्वतंत्र व्यापार का सिद्धांत लागू कर दिया। उसने व्यावसायिक श्रेणी का अंत कर दस्तकारों और कारीगरों को प्रोत्साहित किया। किन्तु जब उसने नमक कर तथा विशेषाधिकारों के अंत का प्रस्ताव राजा के समक्ष प्रस्तुत किया तो विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग ने षड्यंत्र कर तुर्गो को मंत्री के पद से हटवा दिया। 


इसके बाद एक अन्य वित्तमंत्री नेकर को नियुक्त किया गया। नेकर ने राज्य के आय-व्यय के आंकड़े को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करवा दिया। इसमें राजा, दरबारी, कुलीन वर्ग के बेहिसाब खर्चों का उल्लेख था। अंततः इस वित्तमंत्री को भी हटा दिया गया। नेकर के बाद 1781 ई. में केलोन को वित्तमंत्री नियुक्त किया गया। इसने सरकारी घाटे को कर्ज लेकर चुका दिया, लेकिन शीघ्र ही यह रास्ता भी बंद हो गया। इसने पहले के दो वित्त मंत्रियों से आगे बढ़ते हुए तीन सामाजिक वर्गों पर समान रूप से कर लगाने की मांग कर डाली। लेकिन अपने प्रति उच्च वर्ग का विरोध देखते हुए केलोन ने स्वयं ही त्यागपत्र दे डाला। अब ब्रिया को वित्तमंत्री बनाया जिसने आर्थिक सुधारों के लिए एस्टेट जनरल अधिवेशन की सलाह दी जिसे राजा को स्वीकार करना पड़ा। 



फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाएँ एवं चरण 

एस्टेट्स जनरल की बैठक 

प्राचीन राजतंत्र के तहत फ्रांसीसी सम्राट अपनी मर्जी से कर नहीं लग सकता था। इसके लिए उसे एस्टेट जनरल/जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुलाकर नए करों के अपने प्रस्ताव पर मंजूरी लेनी पड़ती थी। एस्टेट जेनराल एक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे, लेकिन सम्राट ही यह निर्णय करता था कि इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाए। इसकी अंतिम बैठक 1614 ई. में बुलाई गई थी। 


फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई 1789 ई. को नए करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट जेनराल की बैठक बुलाई। इस बार तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे। किसानों, औरत एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था, इसलिए ये लोग उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाकर लाये थे। एस्टेट जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था। इस बार भी लुई XVI इसी प्रथा का पालन करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था परंतु तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने यह मांग रखी कि अब की बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए। जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा। यह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था जिसे मिसाल के तौर पर रूसो ने अपनी पुस्तक The Social Contract में प्रस्तुत किया था। जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे स्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए। यही से क्रांति की शुरुआत हो जाती है। 


टेनिस कोर्ट की शपथ 

तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून 1789 को ये प्रतिनिधि वर्साय के इंडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। उन्होंने अपने आप को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जाएगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी। मोनियर द्वारा रखे गए प्रस्ताव पर ये शपथ ली गई थी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया। 


राष्ट्रीय महासभा 

27 जून को राजा ने असफल होकर तीनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन का आदेश दे दिया। यह फ्रांस की जनता की विजय थी। अब राष्ट्रीय महासभा को संविधान सभा कहकर संबोधित किया गया। 


बास्तील किले का पतन 

संविधान सभा के कार्य के दौरान ही राजा ने रानी व कुलीनों के दवाब में आकर नेकर को वित्तमंत्री के पद से हटा दिया और साथ ही सेना को बुला भेजा, जिसमें विदेशी सैनिकों की संख्या ज्यादा थी। जनता में इसकी प्रतिक्रिया हुई और उन्होंने नेशनल गार्ड संगठन का गठन कर लिया जो जनता की जान माल की सुरक्षा करने वाला था। 14 जुलाई को पेरिस में भीड़ ने बास्तील नामक किले पर अधिकार कर वहां से कैदियों को छुड़ा लिया। यह किला जनता पर अत्याचार का गवाह रहा था। जनता ने राजा के सफेद झंडे को त्याग कर लाल-सफेद व नीले रंग के झंडे को अपना लिया। 14 जुलाई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया। किसानों ने सामंतों व जमींदारों के घर, संपत्ति व दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया।  


विशेषाधिकारों का अंत 

अब कुलीनों और पादरी वर्ग ने स्वयं विशेषाधिकारों को त्याग दिया। पादरियों द्वारा सभी मजहबी कर समाप्त कर दिए गए। न्यायाधीशों ने उपाधियां को त्याग दिया। सरकारी सेवाओं के द्वार सभी के लिए समान रूप से खोल दिए गए। 


मानव अधिकारों की घोषणा

27 अगस्त 1789 ई. को राष्ट्रीय सभा ने मानव अधिकार घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में क्रांति के वे निश्चित उद्देश्य व सिद्धांत निहित थे, जिन्हें जनता समझ पाए और ये भविष्य में बनने वाले संविधान का आधार बने। 


1791 ई. का लिखित संविधान 

1791 ई. में प्रथम बार लिखित संविधान की रचना की गई। संविधान जनता की इच्छाओं के आधार पर तैयार किया गया। इसमें निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे -

  • राजा को वेतनभोगी बना उसकी शक्तियों को सीमित कर दिया गया। 
  • जनता की शक्ति को सर्वोच्च माना गयाअर्थात जन-संप्रभुता का सिद्धांत लागू किया गया। 
  • मॉन्टेस्क्यू द्वारा दिया गया शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत लागू कर दिया गया। 


राजतंत्र की समाप्ति 

20 जून 1791 ई. को फ्रांस का राजा लुई XVI भगाने का प्रयास करते हुए पकड़ लिया गया और 21 जनवरी 1793 को उसे मृत्युदंड दे दिया गया। इस घटना ने समस्त यूरोपीय देशों को फ्रांस की जनता के विरुद्ध कर दिया। 


प्रशा और ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा 

अप्रैल 1792 ई. में नेशनल असेंबली ने प्रशा और ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। क्योंकि इनके निरंकुश शासक लुई XVI की मदद करने का प्रयास कर रहे थे। 


सितंबर हत्याकांड 

 प्रशा के सेनापति ने फ्रांसीसी जनता को फ्रांस के शासक को मुक्त करने का आदेश दिया। ऐसा नहीं करने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी। इस घोषणा ने फ्रांसीसी जनता को भड़का दिया। 10 अगस्त 1792 ई. के दिन भीड़ ने राजमहल पर आक्रमण कर राजा के रक्षकों को मार दिया। इस विद्रोह में लगभग 800 स्विस सैनिक मारे गए। अब राजतंत्र को हटाने की मांग की जाने लगी। जैकोबिन दल के सदस्यों ने नया संविधान बनाने की मांग रखी और अस्थायी कार्यपालिका का निर्माण कर दांते को उसका अध्यक्ष बनाया गया। संपत्ति पर आधारित मताधिकार को समाप्त कर सार्वभौमिक मताधिकार तैयार किया गया। दांते ने उन सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिन पर राजा या शत्रु देश को सहायता पहुंचाने की आशंका थी। यह हत्याकांड 2 से 6 सितंबर के बीच हुआ इसलिए इसे 'सितंबर हत्याकांड' कहा जाता है। 


नेशनल कन्वेंशन (1792-1795 ई.)

इसका शासन 1792 से 1795 ई. के मध्य रहा। यह काल जैकोबिन व जीरोंदिस्त दलों के मध्य हुए संघर्ष तथा जैकोबिन दल द्वारा किए गए हत्याकांडों के लिए जाना जाता है। बावजूद इसके कन्वेंशन द्वारा देश को स्थापित प्रदान करते हुए गणतंत्र की स्थापना की गई थी। 


आतंक का शासन 

आतंक का शासन रोब्सपीयर द्वारा गणतंत्र की रक्षा, आंतरिक विद्रोह के दमन, फ्रांस को विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए स्थापित किया गया था। रोबेस्पीयर द्वारा नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई गई थी। वास्तव में जैकोबिन दल के नेताओं ने आतंक का उपयोग व्यक्तिगत तथा दलगत वैमनस्य तथा निजी महत्वकांक्षाओं के लिए किया था। दांते द्वारा विद्रोह के दमन के पश्चात इसे समाप्त करने पर बल दिया गया था, लेकिन रोब्सपीयर ने उसे ग्लोटिन पर चढ़वा दिया। इस महाआतंक की समाप्ति 27 जुलाई 1794 ई. को रोबेस्पीयर के पतन के साथ ही हुई। 


डायरेक्टरी का शासन  

नेशनल कन्वेंशन द्वारा 1795 ईस्वी में नया संविधान बना दिया गया। इसके द्वारा शासन की शक्ति 5 व्यक्तियों की एक समिति को सौंप दी गई, यह व्यवस्था डायरेक्टरी व्यवस्था कहलायी। यह व्यवस्था 1795 ई. से 1799 ई. तक रही। यह पूरी तरह से असफल सिद्ध हुई। डायरेक्टरी (संचालक मंडल) का शासन आंतरिक प्रशासन के मामलों में दुर्भाग्यशाली रहा मगर विदेशी मामलों में उसने सफलता प्राप्त की। 


संचालक मंडल के सदस्य अपनी योग्यता के कारण प्रांतीय दंगों को रोकने में असमर्थ रहे। जैकोबिन दलों के सदस्यों ने पैंथियन नामक समिति की सदस्यता ग्रहण कर संचालक मंडल का विरोध प्रारंभ कर दिया। यह संस्था ट्रिब्यून नामक पत्रिका निकालती थी। बढ़ती महंगाई ने देश की हालत जर्जर कर रखी थी। इन सभी हालातों ने नेपोलियन के उत्थान में मदद की। 



फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव/महत्व/परिणाम 

1. सामंती व्यवस्था का अंत 

लूई XIV के समय यद्पि सामंती व्यवस्था पर नियंत्रण करते हुए शासन को केंद्रीयकृत कर दिया गया था लेकिन क्रांतिकाल में सामंती व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। यह अपमानजनक व्यवस्था सदियों से आर्थिक शोषण का पर्याय थी। समानता के सिद्धांत पर सामंती व्यवस्था को समाप्त समाप्त कर दिया गया। 


2. मानवाधिकारों की घोषणा 

देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून की समक्ष समानता, संपत्ति की सुरक्षा, योग्यता अनुसार पद, समान अवसर इत्यादि को मानव अधिकारों  के रूप में कानून का आधार देकर स्थापित किया गया। मनुष्य के कुछ अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार अर्थात जन्म से प्राप्त अधिकार की संज्ञा दी गई। 


3. राष्ट्रीयता का उदय 

फ्रांस से उठी राष्ट्रीयता की लहर ने जल्द ही समस्त यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया। यह राष्ट्रीयता की लहर इटली में जर्मनी में एकीकरण की प्रेरणा रही। राष्ट्रीयता की इसी लहर ने स्पेन को आगे चलकर नेपोलियन के विरुद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित किया। प्रत्येक देश के नागरिक अपने देश की रक्षा व गौरव के लिए त्याग, बलिदान व संघर्ष की भावना से उठ खड़े हुए। 


4. प्रजातांत्रिक भावना का उदय 

फ्रांस की जनता ने निरंकुश व वंशानुगत राजतंत्र का शासन समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना की। अब देश का शासक वर्ग देश के नाम पर नहीं बल्कि जनता के नाम पर शासन करने को अधिकृत था। जनता अपने प्रतिनिधि को आकांक्षाओं पर खड़ा नहीं उतरने पर हटा सकती थी। अब सर्वोच्च सत्ता जनता में निवास करने लगी। 


5. धर्मनिरपेक्ष राज्य की घोषणा एवं चर्च के अधिकारों की समाप्ति

मजहबी सहिष्णुता फ्रांसीसी क्रांति की महत्वपूर्ण देन थी। प्रत्येक व्यक्ति को उपासना पद्धति चुनने का अधिकार दिया गया। मजहबी समस्याओं एवं पादरियों को राज्य के नियंत्रण में लाया गया एवं उन्हें भी संविधान के अनुसार कार्य व व्यवहार करने को बाध्य किया गया। मजहब को अब व्यक्तिगत विषय बना दिया गया। 


6. राजनीतिक दलों का गठन 

फ्रांसीसी क्रांति में जनता को स्वयं के अधिकारों का ज्ञान हो चुका था अब जनता राजनीतिक अधिकारों से परिचित हो चुकी थी। शासन करने का दैवीय सिद्धांत अर्थात 'राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है इस कारण उसे शासन करने का अधिकार है', उसे अब समाप्त कर दिया गया। शासन की बागडोर जनता के हाथ में आ गई। जनता अपने समूह  हितों के लिए दलों या संगठन के रूप में एकत्रित हो संघर्ष करने लगी। 


7. समाजवाद का प्रारंभ 

क्रांतिकाल में कुलीन वर्ग, सामंत वर्ग एवं पादरियों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। चर्च की संपत्ति पर किसानों को अधिकार दे दिया। समानता के सिद्धांत पर सामंत व्यवस्था का अंत कर किसानों व सामंतों के लिए एक समान कानून व्यवस्था स्थापित की गई। अधिकारविहीन समाज व विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग को बराबर खड़ा कर दिया गया। जैकोबिन दल मजदूरों और निर्धनों का हिमायती था।  


8. शिक्षा संबंधी सुधार 

शिक्षा को चर्च से अलग कर उसके नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया। शिक्षा के मजहबी स्वरूप को बदलकर मानवतावादी बनाने का प्रयास किया गया। शिक्षा में अनुशासन व राष्ट्रीयता को विशेष महत्व देने का प्रयास किया गया। 


9. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचार 

France Ki Kranti का यह सबसे प्रभावित करने वाला परिणाम था। स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के नारे ने न केवल फ्रांस बल्कि संपूर्ण यूरोप को प्रभावित किया। भाषण व लेखन, संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा, राजनैतिक दलों का गठन की आजादी, समान अवसर, योग्यता को महत्व, विधि के समक्ष समानता इत्यादि को स्थापित किया गया। जनता के बीच भाईचारे व सहयोग की भावना से राष्ट्रीयता की नींव को मजबूत किया गया। 


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