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पानीपत के तृतीय युद्ध (1761) का इतिहास

भारतीय इतिहास के इस लेख में हम पानीपत के तीसरे युद्ध (Panipat 3rd War in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे। इस लेख में हम जानेंगे की Panipat Ka Tritiya Yuddh Kab Hua Tha? और Panipat Ka Tritiya Yuddh Kiske Bich Hua Tha? साथ ही इस युद्ध के क्या परिणाम रहे?  


Panipat Ka Tritiya Yuddh Kab Hua Tha

Table of Content


पृष्ठभूमि - Panipat 3rd War in Hindi

बालाजी बाजीराव के पेशवा बनने के पश्चात भारत में मराठा शक्ति का निरंतर विकास और विस्तार होता गया। उसके नेतृत्व में मराठों ने भारत के उत्तरी तथा दक्षिणी भागों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके सुदृढ़ मराठा राज्य की स्थापना की। सन 1760 में मराठों ने सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में दिल्ली पर अधिकार कर लिया, तत्पश्चात उन्होंने लाहौर को भी अपने अधीन कर लिया। उन दिनों अहमदशाह अब्दाली भारत पर निरंतर आक्रमण कर रहा था। उसने 4 बार आक्रमण किया था। मराठों की साम्राज्य विस्तारवादी नीति से दुःखी होकर मुगल सरदारों ने मराठों की शक्ति पर नियंत्रण लगाने के उद्देश्य से अहमदशाह अब्दाली को मराठों पर आक्रमण करने का आमंत्रण दिया। इस प्रकार पांचवीं बार अब्दाली ने सन 1761 में भारत पर आक्रमण किया। इस युद्ध को 'पानीपत का तृतीय युद्ध' (Panipat 3rd War in Hindi) कहा जाता है।


पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे?

पानीपत के तीसरे युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे -

1. दिल्ली दरबार में मराठों का हस्तक्षेप 

दिल्ली के राज सिंहासन और उत्तरी भारत की राजनीति में मराठों का हस्तक्षेप सन 1752 से प्रारंभ हुआ था। उस वर्ष पेशवा बालाजी बाजीराव ने मुगल बादशाह के साथ एक संधि की थी, जिसके आधार पर मराठों को संपूर्ण भारत से चौथ (एक प्रकार का कर) वसूलने का अधिकार मिल गया और मराठों ने आवश्यकता के समय मुगल बादशाह को सहायता देने का आश्वासन दिया था। इस प्रकार मराठों का दिल्ली तथा उत्तरी भारत की राजनीति से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित हो गया। दूसरी ओर परवर्ती मुगल शासकों की दुर्बलता के कारण सत्ता के प्रश्न पर मुसलमानों के मध्य जो संघर्ष प्रारंभ हुआ उस संघर्ष में भी मराठों को हस्तक्षेप करना पड़ा। इस प्रकार उनके बढ़ते हुए राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण मुसलमान की एक वर्ग को उनके प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हुई और इस वर्ग ने मराठों के विरुद्ध अहमदशाह अब्दाली को आमंत्रित किया था।


2. मुगल बादशाह की दुर्बलता 

औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुगल राजवंश लगातार पतन की ओर बढ़ता गया। इसी बीच मध्य सन 1737 में नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया। इस घटना ने मुगल वंश के शासन की रीड को तोड़ दिया। इसके फलस्वरुप बादशाह की स्थिति इतनी अधिक कमजोर हो गई थी कि कोई भी शक्तिशाली आक्रमणकारी आक्रमण करके मुगल साम्राज्य पर अधिकार कर सकता था। इस प्रकार सम्राट की दुर्बल स्थिति ने Panipat Ke Tritiya Yuddh की भूमिका को तैयार किया था।


3. मुगल साम्राज्य में अराजकता का माहौल 

मुगल शासक ने अपनी दुर्बल स्थिति के कारण अपनी सुरक्षा के उद्देश्य से मराठों का संरक्षण स्वीकार कर लिया था, किंतु सीमित साधनों के कारण मराठा मुगल साम्राज्य में शांति व्यवस्था कायम रखने में सम्राट को विशेष सहयोग न कर सके। जिसके फलस्वरुप पूरे साम्राज्य में विशेषकर दिल्ली और निकटवर्ती क्षेत्रों में अराजकता का वातावरण उत्पन्न हो गया। ऐसे माहौल में बाहरी आक्रमणकारी का आक्रमण करने के लिए प्रेरित होना स्वाभाविक था।


4. मराठों की त्रुटिपूर्ण विदेश नीति 

मराठों की विदेश नीति मुख्य रूप से तीन सिद्धांतों पर आधारित थी -

  • आर्थिक लाभ 
  • मुगल साम्राज्य की सुरक्षा 
  • मराठा शक्ति का प्रसार 

इन तीनों सिद्धांतों को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से मराठों ने जिस प्रकार की राजनीति को अपनाया उसके फलस्वरुप मुगल, राजपूत तथा अफगान सभी मराठों के शत्रु बन गए। मराठों ने दिल्ली दरबार की राजनीति के क्षेत्र में चल रही सामंतों की प्रतिद्वंद्विता में अनुचित हस्तक्षेप करके मुगलों को अपना शत्रु बना लिया। राजस्थान के राजपूत शासकों के साथ मराठों ने अमानवीय एवं अदूरदर्शिता पूर्ण नीति को अपनाया जिसके फलस्वरुप राजपूत, जाट सभी मराठों के विरोधी हो गए। इसके अतिरिक्त उन्होंने पंजाब तथा काबुल तक के क्षेत्र पर अधिकार करने की योजना बनाई उससे अहमदशाह अब्दाली की राजनीतिक व साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को गहरा आघात पहुंच। इन योजनाओं ने अब्दाली को मराठों का कट्टर शत्रु बना दिया। 


5. अहमदशाह अब्दाली की महत्वाकांक्षा 

पानीपत के युद्ध से पूर्व अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली भारत पर चार बार आक्रमण कर चुका था। भारत में मराठा शक्ति के उत्कर्ष को उसने अपने विरुद्ध एक सशक्त चुनौती के रूप में स्वीकार किया और उस शक्ति का दमन करने का निश्चय किया। अहमद शाह अब्दाली को यह बात कभी स्वीकार नहीं हो सकती थी कि दिल्ली, पंजाब, लाहौर आदि क्षेत्र पर मराठा शक्ति का अधिकार रहे। मराठों के इस कार्य को वह अपने लिए चुनौती समझता था। अहमदशाह अब्दाली अपनी विजय को सुरक्षित रखने के लिए तथा अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए अत्यंत विशाल सेना रखता था, जिसका खर्च वहन करना अत्यंत दुष्कर कार्य था। इस खर्च की पूर्ति के लिए उसने पंजाब के उपजाऊ प्रदेश पर अधिकार करने तथा भारतीय संपदा को लूट कर धन एकत्रित करने का निश्चय किया।


6. अफ़गान और पेशवाओं की परंपरागत शत्रुता 

अफगानों और पेशवाओं के मध्य परंपरागत शत्रुता थी। सन 1752 में अहमदशाह अब्दाली ने भारत के रूहेला सरदारों के प्रोत्साहन पर भारत में प्रवेश किया और लाहौर तथा मुल्तान की सीमा को मिला लिया। पंजाब से आधिपत्य समाप्त होने पर मुगल बादशाह चिंतित होने लगा और उसने मुगल साम्राज्य की सुरक्षा के लिए मराठों के संरक्षण में रहना उचित समझा। पेशवा बालाजी ने मुगल बादशाह को संरक्षण प्रदान किया इसके अतिरिक्त होल्करसिंधिया जैसे मराठा सरदारों को चौथ देना भी मुगल बादशाह ने स्वीकार कर लिया। इन घटनाओं ने अहमदशाह अब्दाली और पेशवा के मध्य शत्रुता को और अधिक बढ़ा दिया। अहमदशाह स्वयं मुगल सम्राट को अपने अधीन करना चाहता था किंतु दूसरी और पेशवा भी मुगल साम्राज्य से अपने हस्तक्षेप को समाप्त करने को तैयार नहीं था।


पानीपत के तृतीय युद्ध की शुरूआत और अंत 

उपर्युक्त परिस्थितियों के अंतर्गत अफ़गानों व पेशवाओं के मध्य पानीपत के तीसरे युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई। मुगल सरदारों का निमंत्रण प्रकार अहमदशाह अब्दाली अपनी सेना के साथ पानीपत के मैदान में आता डटा। दूसरी और मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ तथा विश्वासराव कर रहे थे। विश्वासराव पेशवा बालाजी बाजीराव का पुत्र था। दोनों पक्षों की सेना नवंबर, 1760 ईस्वी में युद्ध के मैदान में पहुंच गई थी तथा लगभग दो माह तक युद्ध किए बिना आमने-सामने खड़ी रही।


14 जनवरी, 1761 ई. को मराठों की सेना ने अफ़गानों पर आक्रमण किया। इस युद्ध में मराठा सेना का व्यापक संहार हुआ। विश्वासराव, सदाशिवराव, तुकोजी सिंधिया आदि युद्ध में मारे गए। इस युद्ध में मराठों की भीषण पराजय हुई। 


पानीपत के तीसरी युद्ध में मराठों की पराजय तथा व्यापक विनाश से बालाजी बाजीराव को तीव्र आघात पहुंचा जिसके कारण 23 जून, 1761 ई को उसकी मृत्यु हो गई।


पानीपत के युद्ध में मराठों की हार के क्या कारण थे?

इस युद्ध में मराठों की पराजय के मुख्य कारण निम्नलिखित थे - 

1. वित्तीय संकट और पेशवा की उदासीनता 

उस समय मराठा सेना आर्थिक अभाव से ग्रस्त थीं। इस संकट को दूर करने के लिए मराठा सरदार सदाशिवराव भाऊ ने पेशवा बाजीराव बालाजी के समक्ष कुछ सुझाव प्रस्तुत किए थे। किंतु पेशवा ने उन सुझावों पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं किया। धन के अभाव की स्थिति में ही पेशवा ने भाऊ को सेना ले जाने का निर्देश दे दिया। इस प्रकार वित्तीय संकट जैसी गंभीर समस्या से ग्रस्त मराठा सेना अफ़गानों का सामना किस प्रकार कर सकती थी। पेशवा की उदासीन नीति ने मराठों की पराजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। 


2. कुशल नेतृत्व का अभाव 

मराठों की पराजय के लिए सदाशिवराव के नेतृत्व को सर्वाधिक उत्तरदायी माना जाता है। यद्यपि वह वीर तथा साहसी था तथापि उसके व्यक्तित्व में कूटनीतिक योग्यता का सर्वथा अभाव था। पानीपत के मैदान में उसने मराठा सेना को दो महीनों तक अनावश्यक रूप से रोककर अफगानी सेना को युद्ध की तैयारी करने का पूरा अवसर प्रदान कर दिया। उसने किसी रिजर्व सेना का भी प्रबंध नहीं किया जिसका प्रयोग विपत्ति के समय किया जाता। यद्यपि मराठा सेना के पास शत्रु सेना की तुलना में अश्व सेना तथा तोपखाना श्रेष्ठ स्थिति में थे तथापि सदाशिवराव भाऊ उनका उचित उपयोग नहीं कर सका।


3. दोषपूर्ण प्रशासन 

मराठों की प्रशासनिक व्यवस्था दोषपूर्ण थी। उन्होंने मराठा राज्य के विस्तार से पूर्व अपनी राजनीतिक व आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने की और कोई ध्यान नहीं दिया। जैसे-जैसे मराठा राज्य का विस्तार हुआ प्रत्येक मराठा सामंत स्वयं अपनी इच्छा का स्वामी बन गया। उन सामंतों ने सुदूर भागों पर अपना व्यक्तिगत प्रभाव स्थापित कर लिया और आगे चलकर उन्होंने उन क्षेत्रों को अपना स्वतंत्र कार्यक्षेत्र बना लिया। इस प्रकार सिद्धांतविहीन प्रशासनिक व्यवस्था के कारण मराठा संघ पूर्णतया शक्तिहीन हो गया।


4. सैन्य संगठन का अभाव 

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय के लिए जितना दोषपूर्ण मराठा प्रशासन था। उससे अधिक उत्तरदायी उनका त्रुटिपूर्ण सैन्य संगठन था। मराठों ने दक्षिण में छापामार नीति का प्रयोग किया था। वस्तुतः वे इसी युद्ध कला में निपुण थे, किंतु उन्होंने उत्तरी भारत में इस नीति का परित्याग कर दिया। इसके विपरीत अफ़गानों को खुले मैदान में आमने-सामने युद्ध करने की कला का पूर्ण ज्ञान था। इसलिए मराठों को पानीपत के युद्ध में पराजय का मुंह देखना पड़ा।


5. अहमदशाह अब्दाली की सैनिक योग्यता 

अहमदशाह अब्दाली ने अपनी सैनिक योग्यता का परिचय देते हुए मराठा सैनिकों को पहुंचने वाली खाद्य एवं अन्य रसद सामग्री के स्रोतों एवं मार्गों पर अपना अधिकार कर लिया और मराठा सेना की पराजय को सुनिश्चित कर दिया।


6. पर्याप्त सेना का अभाव 

अफगानों की तुलना में मराठा सैनिकों की संख्या काफी कम थी। अफगान सैनिकों की संख्या 60 हजार थी जबकि मराठा सेना 45 हजारी थी। इसके बावजूद मराठा शिविर में ऐसे नर-नारियों की बहुत बड़ी संख्या थी, जिनका युद्ध से कोई संबंध नहीं था। इस बेकार की भीड़ के होने के दो दुष्परिणाम हुए -

  • पहला, सेना के व्यय का भार अनावश्यक रूप से बढ़ गया जबकि सेना पहले ही धनाभाव के संकट से ग्रस्त थी तथा 
  • दूसरा, अनावश्यक भीड़ के कारण युद्ध की तैयारी में व्यवधान उत्पन्न हो गया।


7. मराठा सरदारों का विश्वासघात एवं असहयोग 

निसंदेह यह कहा जा सकता है कि पानीपत के तीसरे युद्ध में यदि मराठा सरदार मल्हारराव होल्कर, बुंदेला सरदार गोविंद पंत आदि का विश्वास व सहयोग मराठा सैनिकों और सेनानायकों को प्राप्त होता तो उस युद्ध में मराठों की पराजय नहीं होती। मराठा सरदार होल्कर ने भाऊ को युद्ध के मैदान में सहयोग नहीं किया तथा विश्वासघात करके वहां से भाग गया इसी प्रकार गोविंद पंत बुंदेले ने भाऊ के यातायात का उचित प्रबंधन न करके तथा वांछित धन की आपूर्ति की व्यवस्था न करके मराठों की पराजय को आसान कर दिया।


8. मराठों में अनुशासन का अभाव 

मराठा सरदारों और सैनिकों में अनुशासन एवं टीम भावना का अभाव था। उन्होंने अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध संगठित होकर सुनिश्चित ढंग से युद्ध नहीं लड़ा।


9. दक्षिण से पंजाब की अधिक दूरी 

पानीपत के युद्ध का संचालन पेशवा ने दक्षिण में पूना से किया था। वहां से युद्ध के मैदान की दूरी बहुत अधिक थी, इसके कारण युद्ध की ताजा गतिविधियों की सूचना पेशवा को विलंब से मिलती थी। अनेकों बार मराठा सैनिक अपने पेशवा के आदेशों से भी वंचित रहें। इसके अतिरिक्त पेशवा का यह निर्णय भी गलत सिद्ध हुआ की उसने युद्ध के संचालन के लिए निकटवर्ती किसी स्थान पर रहना उचित नहीं समझा। पानीपत के युद्ध का समाचार ज्ञात करने के लिए पेशवा जब उत्तरी भारतीय की ओर चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी।


10. राजपूतों का असहयोग 

 मराठों ने अपनी त्रुटिपूर्ण पूर्ण विदेश नीति के कारण राजपूतों व जाटों को अपना शत्रु बना लिया था। इसलिए पानीपत के युद्ध में उत्तरी भारत के राजपूत शासकों ने मराठों को कुछ सहयोग नहीं दिया।


पानीपत के तीसरे युद्ध के क्या परिणाम रहे?

पानीपत के तीसरे युद्ध के मुख्य परिणाम निम्नलिखित थे - 

1. प्रमुख मराठा सरदारों की मृत्यु 

पानीपत के युद्ध में सदाशिवराव तथा विश्वासराव जैसे कर्मठ एवं योग्य मराठा सरदार वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनकी मृत्यु से मराठा शक्ति को गहरा आघात पहुंचा था।


2. रघुनाथराव का उद्भव 

मराठा इतिहास में रघुनाथराव का चरित्र कलंकित व षड्यंत्रकारी के रूप में जाना जाता है। पानीपत के युद्ध में प्रमुख मराठा सरदारों की मृत्यु तथा उसके बाद पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु के कारण रघुनाथ राव जैसे दुर्बल और षड्यंत्रकारी मराठा सरदार को अपनी कुत्सित महत्वाकांक्षा को पूरा करने का अवसर प्राप्त हो गया।


3. मराठा संघ का विनाश 

पानीपत के युद्ध से पूर्व भारत में मराठा शक्ति एक संघ के रूप में संगठित थी। किंतु इस युद्ध में मराठों की पराजय के फलस्वरुप पेशवा की शक्ति दुर्बल हो गई और मराठा संघ छिन्न-भिन्न हो गया। 


4. अंग्रेजी शक्ति का उत्कर्ष 

उस समय अंग्रेज भारत में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की योजना बना रहे थे। इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम बंगाल में अपना प्रभाव स्थापित किया था। पानीपत के युद्ध में मराठों व मुगलों के पतन के फलस्वरुप भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व के विस्तार की संभावनाओं को मजबूत आधार प्राप्त हो गया। अब अंग्रेजों के मार्ग को अवरुद्ध करने वाली कोई शक्ति नहीं थी। पेशवा के देहांत के कारण कुछ वर्षों तक भारत के राजनीतिक क्षितिज पर अंग्रेजों का कोई भी प्रतिद्वंद्वी नहीं रहा।


5. सिखों का उत्थान 

पानीपत के तीसरे युद्ध का एक अप्रत्यक्ष परिणाम पंजाब में सिख जाति के उत्थान के रूप में परिलक्षित हुआ। इस घटना के फलस्वरुप पंजाब प्रांत में सिखों को उन्नत उन्नति करने तथा अपने राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ।


6. मुगल सत्ता पर प्रभाव 

पानीपत के युद्ध ने भारत में मुगलों की सत्ता के अंत को हरी झंडी दिखा दी थी। इस युद्ध के पश्चात अनौपचारिक रूप से मुगल शासन समाप्त हो गया तथा उसका कार्य क्षेत्र केवल दिल्ली और उसके समीपवर्ती क्षेत्र तक की सीमित रहा रह गया।


FAQs 

1. Panipat Ka Tritiya Yuddh Kab Hua Tha?

Ans. 1761 ई. में

2. Panipat Ka Tritiya Yuddh Kiske Bich Hua Tha?
Ans. मराठों और अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली के मध्य 


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