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प्लासी का युद्ध (1757): कारण, प्रमुख घटनाएँ और परिणाम

भारतीय इतिहास के इस लेख में हम प्लासी के युद्ध (Palasi War in Hindi) के बारे में जानेंगे। इस लेख में आपको Plasi Ka Yuddh Kab Hua Tha?, Plasi Ka Yuddh Kab Aur Kiske Bich Hua तथा Plasi Ka Yuddh Ke Karan क्या थे? आदि सवालों के जवाब मिल जायेंगे। 

Plasi Ka Yuddh

Table of Content


पृष्ठभूमि - Plasi Ka Yuddh

18वीं शताब्दी के मध्य में भारत की राजनीतिक दशा बड़ी सोचनीय थी। मुगल सम्राटों की दुर्बलता के कारण साम्राज्य में अशांति और अराजकता फैली हुई थी। केंद्रीय शासन की दुर्बलता के कारण बंगाल अवध और दक्षिण के प्रांत स्वतंत्र हो गए। 1740 ईस्वी में अलीवर्दी खां ने बंगाल में अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। 1756 में अलीवर्दी खां की मृत्यु हो गई और उसके पश्चात उसका दोहिता सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा। सिराजुद्दौला एक महत्वाकांक्षी शासक था। शीघ्र ही सिराजुद्दौला और अंग्रेजी कंपनी के बीच मनमुटाव बढ़ता गया। जिसके परिणामस्वरुप 1757 में दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया, जिसे प्लासी का युद्ध कहते है।


प्लासी के युद्ध के कारण 

Plasi Ka Yuddh Ke Karan निम्नलिखित थे- 

1. बंगाल के धन संपन्न प्रदेश पर अधिकार करना 

बंगाल एक धन संपन्न तथा उपजाऊ प्रांत था। अतः अंग्रेजी कंपनी बंगाल के धन संपन्न प्रदेश पर अधिकार करके अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहती थी।


2. सिराजुद्दौला का अनादर 

जब 1756 ईस्वी में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा तो अंग्रेजी कंपनी ने प्रचलित परिपाटी का पालन नहीं किया तथा सिराजुद्दौला की ओर उदासीनता प्रकट करके उसका अनादर किया।


3. उत्तराधिकार के षड्यंत्र में भाग लेना 

अंग्रेजों के भड़काने पर सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा शौकत जंग ने सिराजुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाए जाने का कड़ा विरोध किया था। अतः ऐसी दशा में सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से नाराज होना स्वाभाविक था।


4. अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला के विरोधियों को सहायता देना 

सिराजुद्दौला के संघर्ष का प्रमुख कारण यह भी था कि अंग्रेज सिराजुद्दौला के विरोधियों को भड़कते थे तथा उन्हें संरक्षण प्रदान किया करते थे।


5. अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग 

1717 ईस्वी में मुगल सम्राट फर्रूखसियर ने अंग्रेजी कंपनी को ₹3000 वार्षिक कर के बदले में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में निःशुल्क व्यापार करने का अधिकार दे दिया था। परंतु अंग्रेजी कंपनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने इन व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। वे अपने दस्तक (अनुमति पत्र) भारतीय व्यापारियों को बेचकर धन कमाने लगे और नवाब को आर्थिक क्षति पहुंचने लगे। इस कारण भी सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच कटुता बढ़ती गई। 


6. किलेबन्दी करना 

जब सिराजुद्दौला के नवाब बनने पर अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने अपनी बस्तियों की किलेबंदी करना शुरू किया तो सिराजुद्दौला ने इसका विरोध किया। उसने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसी दोनों कंपनियों को आदेश दिया कि वे अपनी बस्तियों की किलेबंदी करना बंद कर दे। फ्रांसीसी कंपनी ने तो उसकी आज्ञा का पालन करना स्वीकार कर लिया, परंतु अंग्रेजों ने नवाब के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। इस पर सिराजुद्दौला बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने अंग्रेजी कंपनी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया।


प्रमुख घटनायें 

कासिम बाजार तथा कलकत्ता पर सिराजुद्दौला का अधिकार

4 जून, 1756 को सिराजुद्दौला की सेना ने अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात नवाब की सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। कोलकाता का अंग्रेजी गवर्नर ड्रेक जान बचाकर भाग निकला तथा 20 जून, 1756 को कोलकाता पर भी नवाब की सेना का अधिकार हो गया।

इस लड़ाई के साथ ब्लैक होल की घटना भी शामिल है। कहा जाता है कि 20 जून की रात्रि को नवाब के सैनिकों ने 146 अंग्रेज बंदियों को एक 18 फुट लंबी और 14 फुट और 10 इंची चौड़ी कोठरी में बंद कर दिया। इस कोठरी में दम घुटने के कारण 123 व्यक्ति मर गए तथा केवल 23 व्यक्ति ही जिंदे बचे।


कलकत्ता पर अंग्रेजों का पुनःअधिकार 

800 अंग्रेजों और 500 भारतीय सैनिकों को लेकर रॉबर्ट क्लाइव दिसंबर 1756 में स्थल मार्ग से बंगाल के लिए रवाना हुआ। 28 दिसंबर 1756 को क्लाइव ने कोलकाता पर आक्रमण किया। मानिकचंद के विश्वासघात के कारण 2 जनवरी, 1757 को अंग्रेजों ने कोलकाता पर पुनःअधिकार कर लिया। इसके पश्चात अंग्रेजों ने हुगली तथा उसके आस-पड़ोस के स्थान को लूटा।


अलीनगर की संधि 

6 फरवरी, 1757 को सिराजुद्दौला ने कलकत्ता के निकट पहुंचकर कलकत्ता पर अधिकार करने का प्रयास किया किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अंत में उसने 9 फरवरी, 1757 को अंग्रेजों के साथ एक संधि करी जिसे 'अलीनगर की संधि' कहते हैं। इस संधि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थी - 

  • अंग्रेज बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा में बिना चुंगी दिए व्यापार कर सकेंगे।
  • अंग्रेज अपनी इच्छानुसार कलकत्ता की किलेबंदी कर सकेंगे। 
  • अंग्रेजों को सिक्का ढालने की अनुमति दी जाएगी।

इसके पश्चात अंग्रेजों ने चंद्रनगर की फ्रांसीसी बस्ती पर अधिकार कर लिया।


अंग्रेजों का सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्र 

अंग्रेज बंगाल पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ थे इसलिए रॉबर्ट क्लाइव ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। उसने सिराजुद्दौला के मुख्य सेनापति मीरजाफर को लालच देकर अपने पक्ष में कर उसे बंगाल का नवाब बनाने का वचन दिया, जिसके फलस्वरुप उसने अपने स्वामी सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात करना स्वीकार कर लिया। मीरजाफर के अतिरिक्त अमीरचंद, यारलुत्फ, राजदुर्लभ आदि भी इस षड्यंत्र में शामिल हो गए। परिणामस्वरुप 10 जून, 1757 को अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच एक गुप्त संधि हुई।


प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ई.)

रॉबर्ट क्लाइव ने 3 हजार सैनिकों के साथ नवाब की राजधानी की ओर कूच किया वहीं सिराजुद्दौला भी 50 हजार सैनिकों की विशाल सेना लेकर अंग्रेजों का सामना करने के लिए राजधानी से चल पड़ा और प्लासी के मैदान में आ डटा। 23 जून, 1757 को दोनों सेनाओं में युद्ध आरंभ हुआ। मीरजाफर तथा राजदुर्लभ अपनी विशाल सेना के साथ दर्शकों की भांति निष्क्रिय खड़े रहे। परंतु मीरमर्दान तथा मोहनलाल नामक स्वामीभक्त सरदारों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया। परंतु अपने विश्वासघाती सरदारों के कारण सिराजुद्दौला को पराजय का मुंह देखना पड़ा।


प्लासी की लड़ाई का परिणाम और महत्व 

1. राजनीतिक परिणाम 

  • प्लासी की लड़ाई में विजय प्राप्त करके अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना आधिपत्य कर लिया। यद्यपि बंगाल की गद्दी पर मीरजाफर को बिठाया गया परंतु वह अंग्रेजों की कठपुतली मात्र था। 
  • प्लासी की विजय से अंग्रेजी कंपनी की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। अब वह केवल एक व्यापारिक कंपनी न रहकर राजनीतिक सत्ता हो गई।
  • प्लासी की विजय से अंग्रेजों का मनोबल बढ़ गया। बंगाल से उन्हें जो अपार धन की प्राप्ति हुई उसके कारण उनके साधनों में वृद्धि हुई और वे कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसीसियों को परास्त करने में सफल हुए।
  • प्लासी की विजय से अंग्रेजों की महत्वकांक्षा बढ़ गई, अब उन्होंने शेष भारत को भी अपने अधीन करने के प्रयास शुरू कर दिए।


2. आर्थिक परिणाम 

  • अंग्रेजी कंपनी को मीरजाफर से अपार धन राशि प्राप्त हुई साथ ही अंग्रेजी कंपनी को 24 परगना की जमींदारी भी प्राप्त हुई।
  • अंग्रेजी कंपनी को बंगाल में कर मुक्त व्यापार करने की स्वतंत्रता मिल गई। कंपनी को पान, सुपारी और तंबाकू के व्यापार पर एकाधिकार भी प्राप्त हुआ।
  • अंग्रेजी कंपनी को कलकत्ता में अपने सिक्के ढालने की स्वतंत्रता मिल गई।


3. सैनिक परिणाम 

  • प्लासी के युद्ध ने भारतीय सैन्य संगठन की दुर्बलता प्रकट कर दी। अंग्रेजों की एक छोटी-सी प्रशिक्षित एवं अनुशासित सेना ने नवाब पर विजय प्राप्त करके अपने सैन्य संगठन की श्रेष्ठता सिद्ध कर दी। 
  • बंगाल में बारूद की खानों पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्वीकार कर लिया गया, जिससे अंग्रेजों का तोपखाना और भी शक्तिशाली हो गया।


4. नैतिक परिणाम 

अंग्रेजों ने 'फूट डालो और शासन करो' की नीति की सफलता को देखकर इसे भविष्य में भी अपनाने का निश्चय कर लिया। 


FAQs

1. Plasi Ka Yuddh Kab Hua Tha?

Ans. 1757 ई. में 

2. Plasi Ka Yuddh Kab Aur Kiske Bich Hua?

Ans. 1757 ई. में बंगाल के नबाव सिराजुद्दौला तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य 

3. Plasi Ka Yuddh Ke Karan

Ans. प्लासी के युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे -

  • बंगाल के धन संपन्न प्रदेश पर अधिकार करना 
  • अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला के विरोधियों को सहायता देना 
  • अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग 


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